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Home » 2015 » May » 19 » यह कहानी मेरी नहीं जैसलमेर से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में रहने वाली शालू की है. वैसे तो गांव देहात में बेटी का पैदा होना खुशी का पल तो नही
10:08 AM
यह कहानी मेरी नहीं जैसलमेर से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में रहने वाली शालू की है. वैसे तो गांव देहात में बेटी का पैदा होना खुशी का पल तो नही

बचपन में शालू को गांव के एक लड़के विनोद के रूप में अपना सबसे पक्का दोस्त मिल गया. वह दोनों एक साथ खेलते, बातें करते और कभी-कभार झगड़ा भी कर बैठते थे. लेकिन दोस्तों में तो झगड़ा होता ही है, बस यही सोचकर शालू और विनोद फिर से दोस्त बन जाते. विनोद और शालू के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी इसीलिए उन दोनों का मिलना-जुलना किसी को नहीं अखरता था.

 

जैसे-जैसे समय बीतता गया शालू और विनोद का आपसी लगाव भी बढ़ने लगा. दोनों के बीच जो रिश्ता पनपने लगा था वह दोस्ती से शायद बढ़कर था. ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरता था जब विनोद और शालू एक दूसरे से ना मिलें. वह शायद एक-दूसरे से प्यार करने लगे थे… बहुत प्यार. यह सिर्फ जिस्मानी प्रेम नहीं था बल्कि सच्चा प्यार था.

विनोद के परिवार वाले शालू को बहुत पसंद करते थे और विनोद भी शालू के परिवार को अच्छा लगता था. इसीलिए अभिभावकों की ओर से जल्द ही उन दोनों के विवाह की योजना बन गई. दोनों अपने विवाह की बात सुनकर बेहद खुश थे. लेकिन उनकी इस खुशी को जाने किसकी नजर लग गई.

एक दिन विनोद को भयंकर बुखार चढ़ा और वह बेहद बीमार रहने लगा. शालू और विनोद के परिवार वालों ने विनोद की खूब सेवा की. पहले तो गांव के ही एक हकीम से दवाई चलती रही लेकिन तबियत में कोई सुधार ना होने के कारण शहर से डॉक्टर बुलाया गया. लेकिन जब तक डॉक्टर आता विनोद अपना शरीर छोड़ चुका था. पहले तो किसी को भी यह यकीन नहीं हुआ कि मात्र 21 साल में ही विनोद इस दुनिया को अलविदा कह गया है, लेकिन जब डॉक्टर ने विनोद के मरने की पुष्टि की तो पूरा परिवार शोकाकुल गया.

लेकिन एक व्यक्ति था जिसकी आंख में से एक आंसू भी बाहर नहीं निकल पा रहा था, वो थी विनोद की होने वाली पत्नी और उसकी बचपन की दोस्त शालू. शालू एक पत्थर की तरह बन गई थी. उसने अपना एक बहुत गहरा प्यार जो खो दिया था.

कहते हैं समय सब घाव भर देता है लेकिन शालू के जख्मों को तो समय भी नहीं भर पाया. विनोद के परिवार ने तो उसके बिना जीना सीख लिया था लेकिन शालू खुद को अभी भी यह समझा नहीं पा रही थी कि विनोद अब उसके साथ नहीं है….. शायद विनोद ने कभी उसका साथ छोड़ा ही नहीं.

2 महीने बीत चुके थे और अब शालू के परिवार वाले उस पर किसी और से विवाह करने के लिए जोर डाल रहे थे. शालू दिल से विनोद को अपना पति मान चुकी थी इसीलिए वह किसी और से विवाह नहीं कर सकती थी. वह दुखी तो थी ही लेकिन अब उसका मानसिक दबाव भी बढ़ने लगा था. लेकिन एक रात अचानक उसे विनोद की आवाज सुनाई दी. वह उस आवाज का पीछा करते हुए काफी दूर निकल आई. उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उसके सामने विनोद खड़ा था. विनोद ने उसे बोला कि वह उससे बहुत प्यार करता है और चाहे कुछ भी हो जाए वह कभी उसे छोड़कर नहीं जाएगा.

शालू ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह उसे छू भी नहीं पा रही थी मानो कि जैसे विनोद नहीं उसकी परछाई खड़ी हो. शालू समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है, वह अपने विनोद को छू क्यों नहीं पा रही है….?

विनोद की आंखों में आंसू आ गए. उसने शालू से कहा मैंने तुझे कहा था ना कि कुछ भी हो जए तुझे छोड़कर नहीं जाऊंगा, ले अब मैं तेरे पास ही रहूंगा. बस मैं तो अब तुम जैसा नहीं हूं ना इसीलिए अब कभी तेरे हाथ नहीं आऊंगा. विनोद के यह कहते ही शालू जोर-जोर से रोने लगी. वह समझ गई कि यह विनोद नहीं उसकी आत्मा है. पर शायद शालू को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह विनोद है या उसकी आत्मा. उसके लिए तो यह वही था जिसके साथ उसने अपना पूरा बचपन बिताया, जिसे वह बहुत प्यार करती थी, उसका अपना विनोद.

उस दिन के बाद शालू को विनोद हर समय और हर जगह दिखाई देता था. वह उससे घंटों बातें करती थी, उसे अपने साथ बैठाकर ही खाना खाती थी. हंसी-मजाक करती और पहले की ही तरह दोनों कई बार झगड़ा भी करते थे. शालू के परिवार वाले और गांव के सभी लोग उसकी किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते थे इसीलिए अब उसने उन्हें विनोद से जुड़ी कोई भी बात कहना बंद कर दिया था.

उसके घरवाले उसे पागल समझते थे लेकिन वह उसी में खुश थी. वह तो बस विनोद का साथ पाकर ही खुश थी. घर के अंदर रहते हुए भी उसने अपने और विनोद के लिए एक अलग जगह बना ली थी. आज शालू की उम्र 40 से ऊपर हो गई है और विनोद आज भी उसी तरह उसके साथ है, वह उसे हर समय अपने आसपास होने का अहसास करवाता है, उसे हर मुश्किल से बचाता है.

आप और हम शायद इस प्यार को ना समझ पाएं लेकिन कुछ रिश्ते समझ से परे होते हैं……!!!

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